चिन्तकों के विचारानुसार विज्ञान, तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षाः एक अध्ययन
Author : डॉ. नवनीत कुमार सिंह
Abstract :
किसी देश या राष्ट्र के चैमुखी विकास के लिये विज्ञान, तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा एक मूलभूत आवश्यकता है। यदि किसी देश में इस शिक्षा की सफल और समुचित व्यवस्था है और यदि यह शिक्षा प्रगति की ओर अग्र्रसर हो रही है, तो उस देश की प्रगति भी अवश्य भावी है। भारतीय समाजवादी चिन्तकों ने लोकतांत्रिक समाजवाद के आधार पर विज्ञान, तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा की आवश्यकता पर बल दिया। पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत में औद्योगीकरण के विकास के लिये विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी के समर्थक थे। बड़ी-बड़ी वैज्ञानिक प्रयोगशालायें और विज्ञान केन्द्र सब नेहरू जी की ही देन हैं। आचार्य नरेन्द्रदेव ने विज्ञान की शिक्षा पर विशेष बल दिया। आचार्य नरेन्द्रदेव ने सन् 1939 व 1953 में प्रस्तुत शिक्षा सुधार योजनाओं में प्राथमिक व माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक व तकनीकी शिक्षा के सम्बन्ध में अनेक महत्वपूर्ण सुझाव दिये थे। डॉ. सम्पूर्णानन्द विज्ञान में स्नातक थे। शिक्षा में विज्ञान की भूमिका पर उनका चिन्तन भारतीय परम्पराओं पर आधारित था। डॉ. सम्पूर्णानन्द की दृष्टि में धर्म के लिए विज्ञान से बढ़कर कोई मित्र नहीं हो सकता। उन्होंने प्रान्त के शिक्षामंत्री व मुख्यमंत्री के रूप में प्राविधिक/तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा हेतु धन के अभाव के होते हुए भी अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये। डॉ. लोहिया का सुझाव था कि शिक्षा द्वारा छोटी मशीनों की तकनीक सुलभ करायी जाये जो ग्रामोद्योग को बढ़ावा दे तथा अधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध कराये क्योंकि भारत की प्रमुख समस्या है कम पूँजी व अधिक जनशक्ति। इसके समर्थन में उन्होंने कहाः ‘‘हर झोपड़ी, गाँवों, कस्बों में ये छोटी मशीनों का उपयोग अनेकानेक घरेलू कार्यों में दासी के रूप में किया जाना चाहिए। जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रान्ति में शैक्षिक क्रान्ति एक महत्वपूर्ण भाग है। उनके अनुसार भी समाजवादी अर्थव्यवस्था की संरचना विकेन्द्रित होनी चाहिए। इसके लिए गृह उद्योगों, कुटीर धन्धों एवं छोटे उद्योगों की स्थापना की जाए तथा उस हेतु व्यावसायिक प्रशिक्षण हो। वर्तमान परिदृश्य में देखा जाये तो आज पूरा विश्व व्यवसाय, विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी के बल पर ही विकसित हो रहा है।
Keywords :
समाजवादी चिन्तक, विज्ञान, तकनीकी, व्यावसायिक शिक्षा।